मन के घोड़े कहाँ है थकते
न होते बोझिल न हाँफते
नहीं झुलसते कभी धूप में
कभी ठंड से नहीं कांपते
इन पर सोचों की कसे लगाम
अपनी आँखों को बंद किये
कुछ जाने अनजाने सपने
उड़ता अपने संग लिए,
न वक्त की कोई हद रहती,
न उम्र का ही होता एहसास,
जितना ही ऊपर जाता हूँ
उतना ख़ुद के आ जाता पास
न देखता हूँ कुछ और मैं फ़िर
न देखता हूँ कुछ और मैं फ़िर
किसी को न दिखता तब मैं
छा जाए गहरी ख़ामोशी
कोई साथ रहे तो मैं बस 'मैं'
आते पल और गुज़रे वो कल
दोनों एक हो जाते हैं
ख्वाब की मंजिल होश के रस्ते
सब मुझमें खो जाते हैं
बस मैं और मेरे ये घोड़े
बस मैं और मेरे ये घोड़े
बेसाख़्ता दौड़े जाते हैं
इस दुनिया के अंदर ही
दुनिया कोई और दिखाते हैं |
- योगेश शर्मा
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