25 जनवरी 2020

'अपना अलग ख़ुदा है'



तेरे फ़लक से शायद मेरा आस्मां जुदा है
इसी लिए सुना है अपना अलग ख़ुदा है

मेरे फ़लक में तारों के रंग दूसरे हैं
सूरज के चमकने के ढंग दूसरे हैं
बहारें इधर की केसर,मौसम उधर हरा है
ज़मीन एक ही है लेकिन हवा जुदा है
इसी लिए सुना है अपना अलग ख़ुदा है

लिखावटें अलग सी अलफ़ाज़ दूसरे हैं
मतलब बताने वाले उस्ताद दूसरे हैं
उनसे सबक न जाने क्यों एक सा पढ़ा है
रब से भी ज़्यादा अपना मज़हब कहीं बड़ा है
साहिल* अलग हमारा और अलग नाख़ुदा* है
इसी लिए सुना है अपना अलग ख़ुदा है

ग़लती से अपना चेहरा है बहुत मिलता जुलता
दोनों की रग़ों में है लाल रंग पलता
पँख एक से हैं परवाज़ अलग लेकिन
दिल के धड़कने की आवाज़ अलग लेकिन
एक दिल पुकारे अम्मी एक दिल ने माँ कहा है
इसी लिए सुना है अपना अलग ख़ुदा है

फ़र्क क्या है पड़ता जो भूख एक सी है
पेट को जलाये वो आग एक सी है
कल को संवारने की आस एक सी है
जिस्मों में दौड़ती ये हर साँस एक सी है
इनकी जो डोर थामे वो उँगलियाँ जुदा है
इसी लिए सुना है अपना अलग ख़ुदा है

तेरे फ़लक से शायद मेरा आस्मां जुदा है
इसी लिए सुना है अपना अलग ख़ुदा है



साहिल* - किनारा
नाख़ुदा* - मल्लाह ,केवट , जहाज़ का कप्तान


- योगेश शर्मा

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