04 फ़रवरी 2022

'काफ़ी सिखाया वक़्त ने'

 



काफ़ी सिखाया वक़्त ने थोड़ा सिखा पाया नहीं
नज़रें झुकाना आ गया ये सर झुका पाया नहीं

दोस्तों से अब भला रिश्ते निभाता किस तरह
आदतें  मिलती नहीं फ़ितरत मिला पाया नहीं

उम्र तो अहले जहां को ही बदलने में गयी
मसरूफ़ इतना हो गया ख़ुद को बदल पाया नहीं

अश्क के लफ़्ज़ों से यूं बोला बहुत था रात वो
शोर में अपने अहम् के कुछ भी सुन पाया नहीं

जो बुझा न आँधियों में हौसलों का वो चिराग़
ख़ुशनुमा मौसम में ही कमबख़्त जल पाया नहीं

काफ़ी  सिखाया वक़्त ने थोड़ा सिखा पाया नहीं।



- योगेश शर्मा 

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