23 मई 2022

'अपनी तन्हाई'

 


अपनी तन्हाई से लिपट कर वो रोता ही रहा
अजनबी सा कोई पहलू में सोता ही रहा

इस यकीं में कि झूमेगी कभी फ़स्ल -ऐ- बहार
सब्र के बीज हर मौसम में बोता ही रहा

ज़िन्दगी तुझसे मोहब्बत का हासिल ये हुआ
दर्द मिलते ही गए चैन खोता ही रहा

पुकारता तो पलट आते वो क़दम शायद
उम्र भर उसको अफ़्सोस ये होता ही रहा

दर्द होगा तो एहसास रहेंगे ज़िंदा
इसलिए ज़ख्म अश्कों से धोता ही रहा

अपनी तन्हाई से लिपट कर वो रोता ही रहा...

- योगेश शर्मा 

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