खिज़ा ने चाहा वो हो गया है
फूल ख़ुश्बू से जुदा हो गया है
चमन ग़ुलज़ार किया था उसने
फ़सल काँटों की भी बो गया है
परस्तिश की हसरत ऐसी जगी
वो अब अपना ख़ुदा हो गया है
तमाम उम्र पलकें ख़ुश्क़ रहीं
लम्हा छूकर उन्हें भिगो गया है
बहुत देर चीख़ा चिल्लाया
ज़मीर फिर थक के सो गया है
मंज़िलें ढूंढ़ता था शहर में जो
घर की दीवारों में खो गया है
सर्द एहसासों में झलकता है
लहू अब बर्फ हो गया है
बेरुख़ी में अजीब राहत थी
प्यार की बर्छियां चुभो गया है
खिज़ा ने चाहा वो हो गया है
*खिज़ा - पतझड़
*परस्तिश - आराधना
- योगेश शर्मा
मंज़िलें ढूंढ़ता था शहर में जो
जवाब देंहटाएंघर की दीवारों में खो गया है ।
क्या बात !!!! बहुत खूब
शानदार रचना प्रिय योगेश जी। उम्दा प्रस्तुति है आपकी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया रेणु जी। आभार
हटाएंतमाम उम्र पलकें ख़ुश्क़ रहीं
जवाब देंहटाएंलम्हा छूकर उन्हें भिगो गया है///
बहुत देर चीख़ा चिल्लाया
ज़मीर फिर थक के सो गया है////👌👌👌👌👌