जिसे खोजता था बड़ी मुद्दतों से
कभी ढूंढता था जिसे बस्तियों में
सेहरा, समंदर, वादियों में
अनजानी पहचानी हस्तियों में
वो कहीं छिपा था मेरी नज़र में
मेरे ख़यालों के हर सफर में
अँधेरी रातों में बन के तारा
चमक रहा था रहगुज़र में
मेरी तमन्नाओं की गली में
मेरी मुरादों के अंजुमन में
तलाश जिस फूल की मुझे थी
खिला हुआ था मेरे चमन में
हर एक शै में झलक थी उसकी
मगर मुझे क्यों नज़र न आया
मिला नज़ारों में नहीं जब
तो मैंने दिल को आज़माया
निगाहें नाकाम थीं जहां पर
वो काम दिल ने कर दिखाया
और फिर मासूमियत से
राज़ एक गहरा बताया
'रिश्ते दीखते नहीं
महसूस किये जाते हैं
इनको पाने में
लम्हें जिए जाते हैं
लम्हों से हर जवाब मिलता है
करो महसूस तो ख़ुदा भी मिलता है'
अब न कोई तलाश है बाकी
न कुछ पाना बाकी रहा बस्तियों में
उस नूर की रौशनी में समाया
चला जा रहा हूँ मैं बस मस्तियों में
- योगेश शर्मा