11 दिसंबर 2023

'ज़िन्दगी हमेशा'

 

  


कितने नए करिश्में हर पल दिखा रही है
ज़िन्दगी हमेशा चलना सिखा रही है

कब जीत को मनाना कब हार में चुप रहना
कब रुक के साँस लेना कब तोड़ हदें बहना
कभी कोशिशों में गिरना फिर उठ के आगे बढ़ना
ख़्वाबों में नहीं, ख़्वाबों को जीना सिखा रही है
ज़िन्दगी हमेशा चलना सिखा रही है

अपने को थामना जब कोई और न संभाले
एक दीप बनके जलना खो जाएँ जब उजाले
ख़ुद को ही अपना साथी और कारवां बनाले
अंतर-मन से अपने जुड़ना सिखा रही है
ज़िन्दगी हमेशा चलना सिखा रही है
 
अक्सर नज़र वो आये चाहें जो देखना हम
 अपने कभी हैं लगते दूसरों के भी ग़म
लगता कभी पराया कोई दोस्त कोई हमदम
नज़रें नहीं नज़रिया बदलो बता रही है
ज़िन्दगी हमेशा चलना सिखा रही है
 
खानी है हंस के ठोकर हर दर्द पीना होगा
जब तक है सांस बाकी खुल के जीना होगा
गर्दिश की सुइयों में बर्दाश्त को पिरो के
चुपचाप ज़ख्म सारे सीना सिखा रही है
ज़िन्दगी हमेशा चलना सिखा रही है

ज़िन्दगी हमेशा चलना सिखा रही है

 

 - योगेश शर्मा

20 सितंबर 2023

'नश्तर'




दर्द - ए - दिल में कमी न रहने दो
दिल में नश्तर गड़ा ही रहने दो

लम्हें बेरंग थे अब जाके रंग आया है
ये लहू बह रहा है बहने दो

बनके रह जाएगा चिड़ियों का बसेरा कल से
इस नए बुत को आज ख़ुदा रहने दो

ऊंची आवाज़ को हक़ीक़त मानने वालों
 चीख़ के मुझको एक झूठ ज़रा कहने दो

बाद मुद्दत के एहसास कोई छलका है 
अश्क की बूँद पलकों पे पड़ी रहने दो

फिर न आने का उसको यकीं गहरा है
लौट आएगा कभी मेरा भरम रहने दो

अभी ये वक़्त बदलने में वक़्त बाकी है
वक़्त की मार कुछ और वक़्त सहने दो

अनगिनत लम्हों की धड़कन इनमें ज़िंदा है
सूखे फूलों को किताबों में पड़ा रहने दो

दर्द- ए- दिल में कमी न रहने दो
      दिल में नश्तर गड़ा ही रहने दो..... 


- योगेश शर्मा

10 जून 2023

'मेरी कहानी बाकी है'




कुछ मोड़ बचे हैं किस्सों में
कोई बात पुरानी बाकी है
दुनिया के फ़सानों में अब भी
कहीं मेरी कहानी बाकी है

कुछ ख्वाब बचे हैं आँखों में
कुछ क़र्ज़ दबे हैं साँसों में
कई वादे पूरे होने हैं
कई कसमें खानी बाकी है

दुनिया के फ़सानों में अब भी
कहीं मेरी कहानी बाकी है

हवा ने गुलों को तोड़ दिया
पत्तों ने खिज़ा में छोड़ दिया
कोई बात नहीं इन शाखों में
अभी बहुत जवानी बाकी है

दुनिया के फ़सानों में अब भी
कहीं मेरी कहानी बाकी है

है मंज़िल क्या और क्या है सफ़र
दोनों में फ़र्क़ न आये नज़र
लेकिन क़दमों की सरगम फिर
राहों को सुनानी बाकी है

दुनिया के फ़सानों में अब भी
कहीं मेरी कहानी बाकी है

मेरे साहिल के दामन में
ये सोच के महल बनाना तुम
तूफ़ां ही संभला है लेकिन
मौजों की रवानी बाकी है

दुनिया के फ़सानों में अब भी
 कहीं मेरी कहानी बाकी है


- योगेश शर्मा 

                                                                                                                                          

09 जुलाई 2022

'अजनबी से हम'

 

दिल में ख़लिश छुपाए
चेहरे में थोड़े ग़म
हैं साथ में तो लेटे
पर अजनबी से हम

तक़रार  में हुए हैं
जज़्बात बयां जबसे
माथे पे सिलवटें हैं
खामोश जुबां तबसे
हैं होंठ खुश्क थोड़े
आंखें हैं थोड़ी नम
हैं साथ में तो लेटे
पर अजनबी से हम

अपने अहम् से जबसे
नाता सा जोड़ बैठे
इक दूसरे से तबसे
रिश्ता ही तोड़ बैठे
अब एक सिरे पे वो है
दूजे सिरे पे हम
हैं साथ में तो लेटे
पर अजनबी से हम

खामोशियों के नश्तर
रुक रुक के गड़ रहे हैं
जिस्मों के फ़ासले भी
कुछ ऐसे बढ़ रहे हैं
जैसे चले नहीं हों
कभी साथ दो कदम
हैं साथ में तो लेटे
पर अजनबी से हम

साँसों की उसकी हलकी
आवाज़ लगे ऐसे
कहती हो बढ़ के आगे
फिर थामो पहले जैसे
कतराते यूं रहे जो
कुछ और थोड़ा हमदम
बन जाए न कहीं फिर
पूरे ही अजनबी हम

दिल में ख़लिश  छुपाए
चेहरे में थोड़े ग़म
हैं साथ में तो लेटे
पर अजनबी से हम



- योगेश शर्मा 

10 जून 2022

'जलना ज़रूरी है'




हवा से ज़्यादा अपने से लड़ना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है

बुझाने मुझको कबसे हवाएं चल रही हैं
रौशनी में लेकिन उम्मीदें पल रही हैं
संभालने को उनको संभलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है

सुलग सुलग के बरसों समेटा हुआ सभी
धुआँ भरा है मुंह में बांटा नहीं कभी
ज़हर पहले ख़ुद ये निगलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है

हवा को ये भरम उसमें ज़ोर है बहुत
और वक्त इस दिए का कमज़ोर है बहुत
सोच उसकी अब तो बदलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है

कुछ देर इस नश्तर को ढाल बनना होगा
मदमस्त थपेड़ों का हर वार सहना होगा
सांचे में नए फिर से ढलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है

हवा से ज़्यादा अपने से लड़ना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है।



- योगेश शर्मा

06 जून 2022

'कुछ भी गलत नहीं'

 


कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं
बातें वही हैं सच
जो हमने कही नहीं

लम्हों की हर हक़ीक़त
पलों की कहानियां
शोर करते किस्से
चुप सी निशानियां
कुछ दिल में छिप न पायीं
कुछ आँखों से बही नहीं

कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं

चुपके से जो छुपा ली
माथे की सिलवटें
होंठों में जो दबा ली
वो मुस्कुराहटें
 न हों सकी किसी की
और अपनी रही नहीं

कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं

ख़ामोश हैं नज़ारे
वादियां भी गुमसुम
दम तोड़ते से लगते
ये सांस लेते मौसम
आयी ख़िज़ा थी मिलने
वापस गयी नहीं

कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं
बातें वही हैं सच
जो हमने कही नहीं। 


*ख़िज़ा - पतझड़ 


- योगेश शर्मा 

30 मई 2022

'आस्मां पे नज़र रखो'


आस्मां पे नज़र रखो
ज़मीं की भी ख़बर रखो
कस के थामो हाथ हिम्मत का
थोड़ी ज़िद थोड़ा सबर रखो

आस्मां पे नज़र रखो

पंख मज़बूत हों परवाज़* से पहले
हौसले वो जो हर तपिश सह ले
ज़ोर कितना भी हो हवाओं में
न सरक पाए ज़मीं पैरों तले
उससे रिश्ता बनाकर रखो
आस्मां पे नज़र रखो

ख़्वाब देखो जो नींदें उड़ाए
जुनून ऐसा हर थकन जो मिटाये
रौशनी के भरोसे रहना क्या
रखना अँधेरे में उम्मीदें जलाये
दिल में सूरज उगाकर रखो
आस्मां पे नज़र रखो

दुनिया तुमको आज़माएगी
हर कदम मुश्किलें बढ़ाएगी
बस बहारों में संग चलती है
बिगड़े मौसम में छोड़ जायेगी
दोस्ती ख़ुद से बराबर रखो
आस्मां पे नज़र रखो

ज़मीं की भी ख़बर रखो


*परवाज़ - उड़ान 


- योगेश शर्मा 


23 मई 2022

'अपनी तन्हाई'

 


अपनी तन्हाई से लिपट कर वो रोता ही रहा
अजनबी सा कोई पहलू में सोता ही रहा

इस यकीं में कि झूमेगा खुशियों का चमन
सब्र के बीज हर मौसम में बोता ही रहा

ज़िन्दगी तुझसे मोहब्बत का हासिल ये हुआ
दर्द मिलते ही गए चैन खोता ही रहा

पुकार लेता तो पलट आते वो क़दम शायद
उम्र भर उसको अफ़्सोस ये होता ही रहा

दर्द होगा तो एहसास रहेंगे ज़िंदा
इसलिए ज़ख्म अश्कों से धोता ही रहा

अपनी तन्हाई से लिपट कर वो रोता ही रहा...

- योगेश शर्मा 

16 फ़रवरी 2022

'अक्सर ये ख़्वाब मेरे'


जाती उम्र पे आते शबाब देखते हैं
अक्सर ये ख़्वाब मेरे कुछ ख़्वाब देखते हैं

डर डर के देखने में रखते नहीं यकीं
जो कुछ भी देखते हैं बेहिसाब देखते हैं

करती है ज़िन्दगी जो होश में सवाल
मदहोशियों में उनके जवाब देखते हैं

लम्हे मोहब्बतों के सूखे फूल बन कर
खो गए हैं जिसमें वो किताब देखते हैं

दिल में छुपी हुयी कुछ शर्मीली हसरतें हैं
परदे हटा के उनको बेनक़ाब देखते हैं

हो जाए रात कितनी भी स्याह मगर ये
बुझते से हौसलों में आफ़ताब देखते हैं

खोयी हुयी सी राहें नामुमकिन मंज़िलें
दिखती नहीं किसी को, जनाब देखते हैं

मायूसियाँ हों चाहे नाकामियां हज़ारों
मुझको ये हमेशा कामयाब देखते हैं

अक्सर ये ख़्वाब मेरे कुछ ख़्वाब देखते हैं


- योगेश शर्मा 

07 फ़रवरी 2022

'आसमां से इक सितारा'

 



आसमां से इक सितारा मेरी छत प
देखता रहता है मेरी ओर अक्सर

दूर से तकता हूँ बस चुपचाप उसको
वो झिलमिला के दे कई पैग़ाम मुझ को

बादलों में ग़ुम कभी हो जाए जब
दिल का फ़लक़ वीरान सा हो जाये तब

आसमां की छानता हूँ सारे राहें
जम सी जाती हैं घटाओं पर निगाहें

चिलमन हटा कर जब कभी बाहर वो आये
उसकी चमक चेहरे पे मेरे जगमगाये

सिलसिला कबसे न जाने चल रहा है
एक दीपक हसरतों का जल रहा है

छूने उसे यूं हाथ तो अक्सर बढ़ाये
पर सितारे भी कभी क्या हाथ आये

डर रहा हूँ साथ न छूटे हमारा
ख्वाब सा ग़ुम हो न जाए वो सितारा

थोड़ा डर और हसरतें पलकों में भर कर
फिर पहुँच जाता हूँ मैं हर रात छत पर

आसमां से इक सितारा मेरी छत प
देखता रहता है मेरी ओर अक्सर ।

 

- योगेश शर्मा